लखनऊ : पंचायत चुनाव में कोरोना से शिक्षकों की मौत के विवाद में उलङो
बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री सतीश द्विवेदी की मुश्किलें निर्धन वर्ग कोटे
में छोटे भाई डा.अरुण कुमार की नियुक्ति होने पर और बढ़ी है। कांग्रेस, सपा
और आम आदमी पार्टी समेत प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने निर्धन आय वर्ग कोटे
में भाई की नियुक्ति पर सवाल खड़े कर के बेसिक शिक्षा मंत्री को घेरना शुरू
कर दिया है।
प्रमाण
पत्र बनाने की जांच कराने और नियुक्ति निरस्त करने की मांग जोरों से उठ
रही है। बेसिक शिक्षा मंत्री के छोटे भाई की नियुक्ति सिद्धार्थ
विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुई
है।
सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने भी
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भेजे शिकायती पत्र में कहा कि वनस्थली विद्यापीठ
राजस्थान में मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे मंत्री के भाई
का निर्धन आय वर्ग प्रमाणपत्र कैसे बन गया? इसकी जांच होनी चाहिए।
सत्ता का दुरुपयोग: सपा
समाजवादी
पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने आरोप लगाया कि पंचायत चुनाव में
शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत को लेकर गलत आंकड़ेबाजी करने वाले बेसिक
शिक्षा राज्य मंत्री ने सत्ता का दुरुपयोग करके गरीबों के आरक्षण कोटे का
दुरुपयोग किया है। उन्होंने पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराकर दोषियों
पर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की।
कांग्रेस ने की जांच की मांग
कांग्रेस
प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने आपदा में अवसर हड़प कर निर्धन का
अधिकार मारने का आरोप बेसिक शिक्षा मंत्री और उनके भाई पर लगाया। उन्होंने
कहा कि सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु में सहायक प्रोफेसर पद पर
नियुक्ति कराने के लिए बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा किया गया। उन्होंने पूरे
मामले में संलिप्त लोगों की जांच कराकर विधिक कार्रवाई कराने की मांग की।
नौकरी के लिए लाठी खा रहे युवाओं का घोर अपमान: आप
आम
आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने ट्वीट कर मंत्री पर निशाना
साधा। उन्होंने लिखा, आदित्यनाथ जी के मंत्री सतीश द्विवेदी का कारनामा।
1621 शिक्षक चुनाव ड्यूटी में मर गए, मंत्रीजी को नहीं मालूम उन्होंने
सिर्फ तीन बताया। लेकिन अपने सगे भाई को गरीबी के कोटे में नौकरी कैसे देनी
है, ये मंत्रीजी को मालूम है। नौकरी के लिए लाठी खा रहे यूपी के युवाओं का
घोर अपमान है।
विपक्ष के
आरोपों पर बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि उनके छोटे भाई की
नियुक्ति विश्वविद्यालय द्वारा चयन के लिए निर्धारित प्रक्रिया के तहत हुई
है। मंत्री होने के नाते इसमें उनका कोई हस्तक्षेप नहीं है। यदि किसी को
कोई आपत्ति है तो वह इसकी जांच करवा सकता है।
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