सुल्तानपुर स्कूलों में बच्चों को फल वितरण की योजना को शुरू हुए करीब छह वर्ष हो गए। इस बीच महंगाई करीब डेढ़ से दोगुना बढ़ गई, लेकिन फल
वितरण
की दरे पुरानी ही दी है प्रत्येक सोमवार में स्कूलो में बच्चों को फल
बांटना भी अनिवार्य है वह भी निर्धारित शर्तों के मुताबिक ऐसे में वह कार्य
शिक्षकों को परेशान किए है। हालत यह है कि किताबी गणित को चुटकियों में हल
कर देने वाले गुरुजन भी चार रुपये में बच्चों को फल वितरण के फॉर्मूले में
उलझे जा रहे हैं। बहुत माथापच्ची करने के बाद भी सवाल का ऐसा हल नहीं निकल
रहा, जिसमें पूरे अंक मिल सके।
कक्षा एक से आठ
तक के राजकीय परिषदीय अर्द्ध सरकारी व सहायता प्राप्त विद्यालयों के बच्चों
को ताजे व मौसमी फल वितरण करने की योजना एक जुलाई 2016 से लागू हुई थी। उस
समय प्रति सोमवार प्रति छात्र चार रुपये की दर से धनराशि स्वीकृत की गई
थी। उसमें शर्त यह थी कि विद्यार्थियों को वितरित होने वाला फल ताजा व
साबुत होगा। सड़े गले अथवा कटे हुए फल वितरित करने पर प्रधानाध्यापक के
विरुद्ध
कार्रवाई
की जाएगी। योजना को लागू हुए लगभग छह साल का वक्त बीतने की है। इस धनराशि
में एक पैसे की बढ़ोतरी नहीं हुई है, जबकि महंगाई प्रतिवर्ष करीब डेढ़ गुना
बढ़ जा रही है। देखा जाए तो इस समय केले के अलावा कोई ऐसा फल नहीं है, जो
चार रुपये में साबुत ही मिल सके। अनार 100 रुपये प्रति किलो मुसम्मी 60
रुपये प्रति किलो सतरा 80 रुपये प्रति किलो, सेब 150 रुपये प्रति किलो,
चोकू 60 रुपये प्रति किलो व केला 60 रुपये प्रति दर्जन की दर से बिक रहा
है। विद्यालयों के शिक्षकों को सोमवार को फल वितरण के लिए अपनी जेब से पैसे
लगाने पड़ रहे है।
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